जालंधर/आशु घई
नगर निगम जालंधर में मकान का नक्शा पास कराना जंग लड़ने से कम नहीं है। निगम के चक्कर लगाते-लगाते आपके चप्पल घिस जाएंगे, पर आपका नक्शा एक टेबल से दूसरी टेबल तक टस से मस नहीं होगा। तमाम कोशिशों के बाद भी आपका नक्शा समय पर पास हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है। नियम कहता है कि आवेदन देने के 30 दिनों के अंदर नक्शे के मामले का डिस्पोजल हो जाना चाहिए, पर निगम में सालों से नक्शा पास करने से संबंधित सैकड़ों मामले पेडिंग हैं।
नगर निगम में लोगों की सहूलियत के लिए कई काउंटर बनाए गए हैं। ऑफिस के फर्स्ट फ्लोर पर नक्शा ब्रांच है, पर अगर आप काउंटर पर मौजूद कर्मचारी से पूछेंगे कि नक्शा पास कराने के कहां आवेदन देना है, तो वे चौथे फ्लोर पर जाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेंगे। आप सांस लेते सीढ़ियां चढ़ते हुए जब चौथे फ्लोर पहुंचेगें तो आप को पुरानी बिल्डिंग में जाने को कहा जाएगा। नक्शा पास करने का क्या प्रॉसेस है ? किन अधिकारियों व कर्मचारियों से मिलना होगा? इसकी जानकारी नहीं मिलेगी। इतना ही नहीं, यहां चलते-फिरते कई दलाल नजर आएंगे, जो नक्शा पास कराने के नाम पर एवज में आपसे मोटी रकम ऐंठ सकते हैं।
स्थानीय निकाय मंत्री के जालंधर से होने के बावजूद भी बिना पैसे दिए आपका नक्शा पास हो जाएगा, यह मुमकिन नहीं है। हालात यह है कि बिना घूस दिए फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल नहीं बढ़ती है। अगर आपने संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों की जेब गरम नहीं की तो आपकी फाइल यहीं धूल फांकती रह जाएगी। यहां से आवेदन निगम ऑफिस के जूनियर इंजीनियर के पास आता है। यहां साइट वैरीफिकेशन के नाम पर छोटे मकान के लिए तथाकथित तौर पर 1500 रुपए व बड़ी इमारतों के लिए 15 हजार रुपए घूस के तौर पर मांगे जाते हैं। यहां की डिमांड पूरी होने के बाद आवेदन टाउन प्लानर के पास आता है। फिर जूनियर इंजीनियर के पास से होते हुए नक्शा डिपार्टमेंट में आता है। कई बार तो आवेदन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अंतिम एप्रूवल नहीं दिया जाता।
जानकारों का कहना है कि नियम के तहत 30 दिनों में पास किए जाने वाले नक्शे चार से छह माह बाद पास हो पा रहे हैं। जिसके चलते मकान-दुकान बनवाने वाले खासे परेशान हैं।

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