जालंधर/विशाल कोहली
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बेसमेंट में चल रहे कोचिंग सेंटर में पानी भरने से तीन छात्रों की डूबने से मौत हो गई। डरा देने वाले इस हादसे के बाद देशभर में हड़कंप मचा हुआ है। इसके बाद भी पंजाब सरकार के साथ साथ नगर निगम कमिश्नर, डिप्टी कमिश्नर व जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की नींद नहीं खुली है।
शहर के बीचों बीच स्थित कपूरथला चौक समीप बच्चों के एक अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्था मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहाँ बेसमेंट में बने वार्ड में नन्हे-मुन्ने बच्चों का इलाज हो रहा है जबकि नियम है कि बेसमेंट में किसी प्रकार का अस्पताल नहीं चलाया जा सकता है। यहां इलाज के दावों के बीच मरीजों के सिर पर मौत का खतरा मंडरा रहा है। ईलाज के दौरान कई बच्चों की दी जा रही ऑक्सीजन कभी भी घातक हो सकती है। स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे भी यह खेल धड़ल्ले से जारी है। सब कुछ जानते हुए भी अधिकारी चुप्पी साधे हैं।


सवाल यह उठता है कि अगर कोई बड़ी घटना होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। सूत्रों की मानें तो इस अस्पताल के संचालकों को कार्रवाई का डर भी नहीं है क्योंकि उनका सीधे बड़े रसूखदार लोगों से सेटिंग है जिसके चलते वह बेखौफ होकर मानकों के विपरीत अपना धंधा जमाए हुए हैं लेकिन जिम्मेदार हैं कि इस अस्पताल पर कार्रवाई करने से कतरा रहे हैं। समाजिक न्याय संगठन के प्रधान का कहना है कि यदि समय रहते नगर निगम प्रशासन ने कोई भी कार्रवाई न की तो संगठन इस बाबत हाई कोर्ट में जनहित याचिका डाल कर कार्रवाई करवाएगा।
बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधान
बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधानों के अनुसार बेसमेंट का इस्तेमाल पार्किंग के लिए किया जाना चाहिए। इसलिए बेसमेंट एरिया पर फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) नहीं गिना जाता है। बायलॉज के अनुसार व्यावसायिक भवनों में बेसमेंट के अधिकतम 30 फीसदी हिस्से का अन्य गतिविधियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें भी केवल एसी प्लांट रूम या इलेक्ट्रिक रूम ही बनाए जा सकते हैं।

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